Sunday 18 March 2012

तुझसे मिला हूँ ….

दुनिया  में कई तरह के लोग होते हैं | उनमे से कुछ लोग ऐसे भी होतें हैं जो दिल के जज्बात बहुत आसानी से सामने वाले को बेझिझक कह देतें हैं तो कुछ कभी नहीं कह पाते | मैं शायद दूसरे किश्म का इंसान हूँ | ऐसे ही लम्हे को याद करते हुए लिखी गई ये रचना, जब मैं उससे मिला था लेकिन लाख कोशिशों के वावजुद उससे कुछ नहीं कह पाया | आज यहाँ कह रहा हूँ ........

तुझसे मिला हूँ
इस तरह तो
सोचता हूँ
क्या कहुँ ।                                                                                                                                                                             
तुझे चाँद कहुँ,
तुझे सूरज कहुँ,
या कहुँ
खुबसूरत तुझको ।

शायर होता तो
गजल कहता,
कवि होता तो
कोई कविता ।

इनमे से कुछ भी
नहीं हूँ मै,
तो सोचता हूँ
क्या कहुँ ।

तुझे चाँद कहुँ,
तुझे सूरज कहुँ,
या कहुँ
खुबसूरत तुझको ।

सोचता हूँ
इस चेहरे की हकीकत क्या,
बस एक नकाब है 
ये चेहरा ।

और मै नहीं जो किसी के
हुस्न का कायल हो जाऊँ ।
निगाहों के तीर से मै 
घायल हो जाऊँ ।

हमे तो तलाश है 
एक खुबसूरत दिल की,
जो धरकता हो सिने में
और समझता हो दिलों के
नाजुक जज्बात को ।


जज्बात जो मेरे दिल में है ,
जज्बात जो उसके दिल में है ।
पहले दिल से दिल मिले ,
शायद फिर
मुहब्बत का कोई गुल खिले ।


खिलने को गुल मुहब्बत के 
खिलतें रहेगे ,
मिलने को तुझसे हम
मिलतें रहेगे ।


मगर तुझसे मिला हूँ
इस तरह तो
सोचता हूँ
क्या कहुँ ।                                                                                                                                                                            
तुझे चाँद कहुँ,
तुझे सूरज कहुँ,
या कहुँ
खुबसूरत तुझको ।



दस्तक

दिल पर चोट खाए इंसान के लिए कभी आसान नहीं होता की वो सबकुछ भूल कर जिंदगी की नयी शुरुआत करे | इसे में यदि दिल के दरवाजे पर दस्तक हो तो इंसान दरवाजा खोलने के पहले कई बार सोचता हैं | कभी-कभी तो दिल के दरवाजे खुल जातें हैं तो कई बार उस दिल के दरवाजे हर किसी के लिए बंद हो जातें हैं | ऐसा ही कुछ हुआ मेरे साथ .............. पर दिल के दरवाजे नहीं खुले | आज भी बंद है मेरे दिल के दरवाजे किसी और दस्तक के इंतजार में |

मरे दिल के दरवाजे पे खड़ी हो तुम
दस्तक की तरह ।
पता है मुझे गुजर जाओगी तुम भी
वक्त की तरह ।।

किसके रोके रुका है ये, वक्त है जो
गुजर ही जायगा ।
चमन मे बहार कुछ पल को है, ये
उजड़ ही जायगा ।।

हर बात से वाकिफ हूँ मैं, किसी बात
से मुझे इंकार नहीं ।
हाँ, है इस दिल की मुहबत तुझसे, मगर
मुझे इकरार नहीं ।।

मेरी चाहत

हर  इंसान जो चाहता है उसे हमेसा वो नहीं मिल पाता । मगर जिंदगी चलती रहती है,  क्यों की चलने का नाम ही जिंदगी है । मगर वो चाहत दिल के किसी कोने में हमेशा जिंदा रहती है । जब कभी उसे मौका मिलता है वो कुलाचे भरने लगता है । ऐसे में इंसान या तो उसे पाने की कोशिश करता है या भुल जाने की । ऐसे ही किसी लम्हे में किसी को पाने की अधूरी चाहत को याद करतें हुए लिखी हुई एक छोटी सी गजल ......................

कई मंजर मेरी आँखों में आज भी है ।
उसका चेहरा मेरी आँखों में आज भी है ।।

आज भी मैं चाहता हू उसे उसी तरह ।
उसे पाने की चाहत दिल में आज भी है ।।

हम वावाफा उसके लिए उसी तरह आज भी हैं ।
मगर जाने क्यों वो खफा मुझसे आज भी है ।।

कई मंजर मेरी आँखों में आज भी है ।
उसका चेहरा मेरी आँखों में आज भी है ।।